
पत्रकार की कलम पर बंदूक का पहरा, आखिर क्यों ?
जैसा कि हम सब जानते हैं कि लोकतंत्र के चार स्तम्भ न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका और मीडिया हैं, जिसमें चौथे स्तम्भ मीडिया का भी अहम योगदान है। पत्रकार का कार्य समाज में हो रहे भ्रष्टाचार, उत्पीड़न, अपराधिक घटनाएं, अधिकारों का हनन आदि मामलों को अपनी लेखनी के | माध्यम से सरकार के पटल पर रखना और जनता को जागरूक करना है। देश की आजादी के बाद सरकारें आती-जाती रहीं, लेकिन किसी भी सरकार ने पत्रकारों के हित में कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया। आजादी से पहले भी | भारत के ईमानदार पत्रकारों ने अंग्रेजो को सच का आईना दिखाया, जिसका खामियाजा उन्हें अपनी कुर्बानी देकर चुकाना पड़ा था। अगर बात की जाए वर्तमान दौर की तो अब पत्रकारों पर अंग्रेजों के जमाने से भी ज्यादा अत्याचार होते नजर आ रहे हैं। जिसका कारण है, निष्पक्ष और ईमानदार होना । वर्तमान समय में लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी को सच लिखने के एवज में या तो अपनी जान की कीमत चुकानी पड़ रही है या फिर उसको समाज में अपमानित होना पड़ रहा है। जिसके प्रमाण आए दिन देखने को मिल रहे हैं।
अगर बात की जाए उत्तर प्रदेश की तो यहां सच लिखने वाले की कलम पर बंदूक का पहरा है, या यूं कहें कि सच लिखना अपराध की श्रेणी में आ चुका है। भले ही वर्तमान सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ | पत्रकारों का शोषण रोकने की बात कह रहे हों लेकिन उनका दावा केवल कागजों में ही सीमित है, धरातल पर शून्य है। जिसका जीता जागता उदाहरण | है उत्तर प्रदेश का जिला मुरादाबाद। जिला मुरादाबाद में एक थाना प्रभारी ने सच लिखने वाले पत्रकारों को ही निशाना बनाकर उन पर बिना किसी साक्ष्य के मनगढ़ंत झूठे मुकदमों की बौछार कर दी है, जोकि लोकतंत्र की हत्या है। यूपी सरकार को चाहिए कि वह पत्रकारों के हित में कोई ठोस कदम उठाए और लोकतंत्र की हत्या होने से बचाए, ताकि पत्रकार निडर एवं निष्पक्ष होकर अपना काम सुचारू रूप से कर सकें । अन्यथा वह दिन दूर नहीं कि सच लिखना गुनाह साबित हो जायेगा ।