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फ़िल्म आदिपुरुष की बड़ी फजीहत हो रही है जिन्होंने देखी है उनके बताएं अनुसार ये देखने लायक नहीं है।

रिपोर्ट-अजीत पाण्डेय

फ़िल्म आदिपुरुष की बड़ी फजीहत हो रही है…

जिन्होंने देखी है उनके बताएं अनुसार ये देखने लायक नहीं है।

फिलहाल फोटो में तो ‘फिल्मी प्रभास’ ऐसे लग रहे जैसे बाराती सुबह खिचड़ी के वक्त लगते हैं।

प्रभास ने ऐसी वाहियात एक्टिंग शायद ही की हो! हर जगह ऐसा दिख रहा है जैसे किसी की जेब काट ली है और सामने वाला उसका नाम लेने वाला हो।

कोई ओज नहीं, कोई भाव नहीं, भाँग खाए व्यक्ति की तरह चढ़ी हुई आँखें। संवाद का वजन बढ़ाने के लिए इको का प्रयोग। लो एंगल कैमरा लगाने से पात्र लार्जर देन लाइफ नहीं हो जाता। उसको निभाना पड़ता है।

#आदिपुरुष की सबसे घटिया बात है इसका लेखन और संवाद। वर्तमान समय में इतने सड़कछाप-छपरी डायलॉग शायद ही किसी फिल्म में हो।

रामायण की महान कथा पर आधारित फिल्म आदिपुरुष के घटिया और निम्नस्तरीय डायलॉग लिखकर मनोज मुंतशिर ने चौराहे पर चार जूता पाने का काम किया है।

(1) “कपड़ा तेरे बाप का! तेल तेरे बाप का! जलेगी भी तेरे बाप की”

(2) “तेरी बुआ का बगीचा है क्या जो हवा खाने चला आया”

(3) “बोल आया हूँ लंका में कि हमारी बहन को उठाने वाले की हम लंका लगा देंगे”

(4) “आप अपने काल के लिए कालीन बिछा रहे हैं”

(5) “मेरे एक सपोले ने तुम्हारे शेषनाग को लंबा कर दिया अभी तो पूरा पिटारा भरा पड़ा है”

ये क्या वाहियातपना है शुक्ला जी? आप मुंतशिर ही ठीक थे।

मुद्दे की बात एक ही है…..जब प्रस्तुति ही बर्बाद है, तो उसे कोई नहीं बचा सकता……बायॅकाट पर क्यों ध्यान लगाना… यह फ़िल्म स्वयं ही डूब जायेगी।।

अंत में आमजन के लिए सुचना:-

PVR Cinemas के एडवांस टिकेट्स 4 घण्टे पहले तक कैंसल किए जा सकते हैं।

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