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समान नागरिक संहिता UCC के लिए प्रेस वेलफेयर फ़ाउंडेशन ट्रस्ट के सुझाव निम्न हैं

समान नागरिक संहिता UCC के लिए प्रेस वेलफेयर फ़ाउंडेशन ट्रस्ट के सुझाव निम्न हैं !!

1) विवाह की आयु लड़कों व लड़कियों की एक समान रखी जाय।कन्या की आयु 18 से बढ़ाकर 20 वर्ष व लड़कों की आयु 21 से घटाकर 20 वर्ष कर दी जाय।साथ ही 20 वर्ष की आयु का होने पर ही उनको बालिग माना जाय व तभी उनको वोट, ड्राइविंग लाइसेंस का अधिकार मिले।तभी यह लैंगिक असमानता समाप्त होगी !!

(2) लिव इन संबंध भारतीय संस्कृति और सामाजिक परंपरा के विपरीत है।इसको संवैधानिक रूप देना न केवल भारतीय संस्कृति का अपमान है बल्कि यह हमारे भारतीय सामाजिक ताने बाने और परंपरा को भी क्षत-विक्षत करने वाला है।अतः लिव इन संबंध असंवैधानिक हों व इन्हें अवैध संबंध मानकर कड़ी सजा का प्रावधान हो !!

(3) भरण पोषण के अंतर्गत,जिस प्रकार पति की मृत्यु के उपरांत पत्नी के लिए मुआवजे व मातापिता की जिम्मेदारी का प्रावधान है,ठीक उसी प्रकार पत्नी की मृत्यु होने पर पति के लिए भी हो।इसका आधार रोजगार व बेरोजगार होना अधिक न्यायसंगत है !!

(4)मेरिटल रेप का भारतीय संस्कृति, परंपरा व जनमानस में कोई उल्लेख नहीं है।जिस सर्वेक्षण के आधार पर मेरिटल रेप का मामला, न्यायालय में प्रस्तुत किया गया है।उस सर्वेक्षण की वास्तविकता भी शंका के घेरे में है। क्योंकि समाज में ऐसा कोई व्यापक सर्वेक्षण हुआ ही नहीं है।ऐसे कानून और सुनवाई की सार्थकता सभी महिलाओं के सर्वेक्षण के बिना निरर्थक है। जब तक कि सभी महिलाओं से मेरिटल रेप के संबंध में सर्वेक्षण न कर लिया जाय तब तक इस मामले पर न्यायालय का कोई सुनवाई करना तर्कसंगत नहीं है। इसलिए अपराध की व्यापकता की गणना परमावश्यक है। अन्यथा दहेज कानून की तरह मेरिटल रेप कानून के भी दुरुपयोग की पूरी पूरी संभावनाएं हैं !!

(5) विधर्मी प्रेम संबंध विशेषतः हिन्दू मुस्लिम प्रेम संबंधों का हालिया अनुभव बताता है कि लव जिहाद एक योजनाबद्ध षडयंत्र है,जिसका लक्ष्य धार्मिक विद्वेष व कटुता की पूर्ति के लिए हत्या के उद्देश्य के लिए हो रहा है।अगर हिन्दू मुस्लिम विवाह में हत्याओं व शोषण का प्रतिशत निकालें तो वह मेरिटल रेप के प्रतिशत से अधिक आएगा।अतः विधर्मी प्रेम संबंध विशेषतः हिन्दू मुस्लिम प्रेम संबंधों के पाए जाने पर हत्या के षडयंत्र, योजना व शोषण के लिए विवाह की साजिश के अंतर्गत अभियोग दर्ज किया जाए !!

(6)विधर्मी विवाह विशेषतः हिन्दू मुस्लिम विवाह प्रतिबंधित हो,क्योंकि पिछले कुछ वर्षों के अनुभव के आधार पर यह हिन्दू पक्ष के लड़का या लड़की की हत्या का षडयंत्र सिद्ध हो चुका है। जिसमें सैकड़ों हिन्दू बच्चियों की निर्मम हत्याएं हो चुकी हैं!!

(8) विधर्मी विवाह को मातापिता की सहमति व हस्ताक्षर के बिना न्यायालय मान्यता ही न दे। क्योंकि जब न्यायालय विधर्मी विवाह विशेषतः हिन्दू मुस्लिम विवाह में होने वाली हत्याओं को रोकने व सुरक्षा देने में ही अक्षम सिद्ध हुआ है।तो ऐसे विवाह को मान्यता देना भी उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर होना चाहिए।न्यायालय या संबंधित न्यायाधीश को ऐसे विवाहों में होने वाली हत्याओं के मामले में एक मुख्य अभियुक्त पक्ष बनाना चाहिए। जिसने न केवल मातापिता की सार्थक आशंकाओं व इच्छाओं को दरकिनार करते हुए विधर्मी विवाह विशेषतः हिन्दू मुस्लिम विवाह की अनुमति दी , बल्कि एक जीती जागती बेटी को निर्मम हत्या होने के लिए अकेला छोड़ दिया !!

(7) कोर्ट मैरिज के संबंध में भी माता पिता की सहमति एक आवश्यक अंग होना चाहिए। क्योंकि मातापिता से अधिक बच्चों का हित कोई नहीं जानता।इस पर कोई शंका ही नहीं है। अतः कोर्ट मैरिज के संबंध में दोनों पक्षों के माता-पिता के गवाह के तौर पर हस्ताक्षर अनिवार्य होने चाहिए।अन्यथा न्यायालय इस विवाह पर संज्ञान ही न ले।यह प्रतिबंधित हो। यदि कोई युगल तब भी विवाह करना चाहे तो उसको अपना जीवन जीने की स्वतंत्रता के आधार पर अनुमति अवश्य मिले,लेकिन उससे पहले वह माता पिता को,खुद पर खर्च किये हुए धन को,माता पिता की अंतिम उच्च आय का 50% धन × बच्चे की आयु, वापस करने के उपरांत विवाह कर सकता है। (हालांकि माता पिता द्वारा ,बच्चे के पालन पोषण में किये जाने वाले प्रयासों संघर्ष और बलिदान का कोई मोल नहीं हो सकता है)
माता पिता यदि चाहें तो बच्चों पर मान हानि का दावा भी कर सकते हैं । इसके लिए बच्चे माता पिता को धन वापसी के समय, शपथ पत्र पर, अपनी इच्छा विरूद्ध विवाह करने के संबंध में NOC ले लें।इसके बाद ही उन्हें विवाह करने के अनुमति मिले !!

(8) समलैंगिक विवाह कभी भी भारतीय संस्कृति और समाज का अंग नहीं रहा है।इस तरह के विवाह को संवैधानिक मान्यता देना ,भारतीय संस्कृति व परंपरा के मूल्यों व आम भारतीय जनमानस के विरूद्ध है। इसको संवैधानिक मान्यता देने से इस मनोविकृति को और अधिक बल मिलेगा। ऐसे लोगों के लिए रिहैबलिटेशन सेंटर, मनोवैज्ञानिक परामर्श व मानसिक आरोग्य केन्द्र की सलाह दी जा सकती है !!

(9) दहेज एक सामाजिक बुराई है। लेकिन अब तक यह कानून अभी तक अप्रभावी रहा है और इसका दुरुपयोग भी बहुत अधिक हुआ है।अतः इस कानून को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए कड़े व सार्थक प्रावधान लागू करने की नितांत आवश्यकता है।इसके लिए विवाह से पहले दोनों परिवारों को अपनी कुल संपत्ति व तीन वर्ष का आयकर रिटर्न का ब्यौरा देना आवश्यक किया जाय व इस सूचना की सत्यता का शपथ पत्र भी दिया जाय।ताकि दहेज के लेनदेन की जांच, प्रशासन विवाह के बाद कभी भी जाकर दिये हुए विवरण के अनुसार कर सके !!

(10) विवाह में होने वाले खर्च की सीमा भी दिये हुए आय प्रमाण पत्र के एक निश्चित प्रतिशत के आधार पर तय की जाय इससे दहेज प्रथा को रोकने व इस पर होने वाला गैर जरूरी व्यय पर बहुत अधिक लगाम लगेगी !!

11)वृद्धजनों पर हो रही घरेलू हिंसा को रोकने के लिए,मातापिता के जीवित रहते संपत्ति का अधिकार मातापिता के ही पास रहे।बच्चों में संपत्ति का बंटवारा न हो ऐसा कानून बनाया जाय।यदि संपत्ति बिक भी जाय तो धन मातापिता के पास ही रहे।बच्चों की आय का एक निश्चित प्रतिशत माता पिता का गुजारा भत्ता तय किया जाय !!

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