धर्म

हजार बार सुनी-सुनाई कथा के फिर से रिलीज होने का अगर लाखों लोग बेसब्री से इंतजार करते है

रिपोर्ट-अजीत पाण्डेय

हजार बार सुनी-सुनाई कथा के फिर से रिलीज होने का अगर लाखों लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं, तो उसका एकमात्र कारण उनकी आस्था ही होती है। आप दर्शक और पाठक तो बटोरना चाहते हैं आस्था के नाम पर, लेकिन आस्था ही गायब करके तर्क देने लगते हैं कि इतिहास में आस्था न ढूंढो, तो ऐसे धोखेबाजी से भरे तर्क से आप केवल अपने जैसे मौकापरस्त लोगों को ही बेवकूफ बना सकते हैं, जो अवसर देखकर बदल जाना जानते हैं। उन लोगों को नहीं, जो राममंदिर बनवाने के लिए धरती पर अपने रक्त से ‘सीताराम’ लिखकर शहीद हो गए।
क्या उस दौर में रचनात्मकता नहीं होगी, या वह समय आधुनिक नहीं रहा था, पर उस समय शायद इतनी निर्लज्जता नहीं थी, जो अब बढ़ती जा रही है, और इसके समर्थन में तरह-तरह के मूर्खतापूर्ण तर्क भी पेश किये जा रहे हैं, एक गलत उद्देश्य के लिए कब तक ये खेल जारी रहेगा?? ये ऐसे लोग हैं जिन्हें रामचरितमानस से कोई तथ्य दिखाओ तो तुरंत उछलकर बोलते हैं कि ‘हम रामचरितमानस को ऐतिहासिक तथ्य ही नहीं मानते, हम तो वाल्मीकि रामायण को ही मानते हैं.’ और यही लोग श्रीराम-सीता जी में दोष या कमी ढूंढने के लिए बीच में लिखी गईं किसी भी रामायण को तथ्य के रूप में पेश करने करते हैं। कुछ चीजें हमेशा प्राकृतिक रूप में ही ग्रहण की जा सकती हैं दुनिया चाहे जितनी बदल जाये, पर कुछ चीजों में परिवर्तन कभी स्वीकार नहीं किया जा सकता है जैसे शरीर के जीवित रहने के लिए निर्मल जल की ही आवश्यकता है, उसी प्रकार समाज के जीवित रहने के लिए रामायण की, और वह भी उसी रूप में जिस रूप में हमें वह ईश्वर से प्राप्त हुई है। यदि आप इन बातों का ध्यान रखते हैं तो आपके द्वारा रचे गए नए वर्जन का खुले दिल से स्वागत है पर यदि आप इन बातों का ध्यान नहीं रखना चाहते, तो रचनात्मकता या तथाकथित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर अपने घिसे-पिटे तर्क कहीं और जाकर दीजिये, अपनी कुंठा कहीं और जाकर निकालिये, संसार में विषयों की कमी नहीं है। भगवान की लीलाओं पर फिल्म बनाने वालों प्रभु का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ईश्वर की लीला कैसे दिखाई जाए, कैसे नहीं इस चीज का तो ध्यान होना ही चाहिए .. ?

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