
भारत के राष्ट्र-गान जन गण मनके रचयिता
रबीन्द्रनाथ ठाकुर
रबींद्रनाथ टैगोर
जन्म 7 मई 1861 कलकत्ता
निधन 7 अगस्त 1941 कलकत्ता
रबींद्रनाथ टैगोर
भारत के राष्ट्र-गान जन गण मन के रचयिता,एक बांग्ला कवि, कहानीकार,गीतकार, संगीतकार,नाटककार, निबंधकार और चित्रकार थे। भारतीय संस्कृति के सर्वश्रेष्ठ रूप से पश्चिमी देशों का परिचय और पश्चिमी देशों की संस्कृति से भारत का परिचय कराने में टैगोर की बड़ी भूमिका रही तथा आमतौर पर उन्हें आधुनिक भारत का असाधारण सृजनशील कलाकार माना जाता है।उनका जन्म 1861 कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में देवेंद्रनाथ टैगोर और शारदा देवी के पुत्र के रूप में एक संपन्न बांग्ला परिवार में हुआ था।बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री टैगोर सहज ही कला के कई स्वरूपों की ओर आकृष्ट हुए जैसे साहित्य,कविता, नृत्य और संगीत।दुनिया की समकालीन सांस्कृतिक रुझान से वे भली भाँति अवगत थे।साठ के दशक के उत्तरार्ध में टैगोर की चित्रकला यात्रा शुरू हुई।यह उनके कवित्य सजगता का विस्तार था।हालांकि उन्हें कला की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिली थी उन्होंने एक सशक्त एवं सहज दृश्य शब्दकोश का विकास कर लिया था।श्री टैगोर की इस उपलब्धि के पीछे आधुनिक पाश्चात्य पुरातन एवं बाल्य कला जैसे दृश्य कला के विभिन्न स्वरूपों की उनकी गहरी समझ थी।रबीन्द्रनाथ टैगोर की स्कूल की पढ़ाई प्रतिष्ठित सेंट ज़ेवियर स्कूल में हुई।टैगोर ने बैरिस्टर बनने की चाहत में 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन पब्लिक स्कूल में नाम दर्ज कराया।उन्होंने लंदन कॉलेज विश्वविद्यालय में क़ानून का अध्ययन किया लेकिन 1880 में बिना डिग्री हासिल किए ही वापस आ गए।रबीन्द्रनाथ टैगोर को बचपन से ही कविताएँ और कहानियाँ लिखने का शौक़ था।उनके पिता देवेन्द्रनाथ ठाकुर एक जाने-माने समाज सुधारक थे।वे चाहते थे कि रबीन्द्र बडे होकर बैरिस्टर बनें।इसलिए उन्होंने रबीन्द्र को क़ानून की पढ़ाई के लिए लंदन भेजा।लेकिन रबीन्द्र का मन साहित्य में ही रमता था।उन्हें अपने मन के भावों को काग़ज़ पर उतारना पसंद था।आख़िरकार उनके पिता ने पढ़ाई के बीच में ही उन्हें वापस भारत बुला लिया और उन पर घर-परिवार की जिम्मेदारियां डाल दीं। रबीन्द्रनाथ टैगोर को प्रकृति से बहुत प्यार था। वे गुरुदेव के नाम से लोकप्रिय थे। भारत आकर गुरुदेव ने फिर से लिखने का काम शुरू किया।दो दो राष्ट्रगानों के रचयिता रवीन्द्रनाथ टैगोर के पारंपरिक ढांचे के लेखक नहीं थे।वे एकमात्र कवि हैं जिनकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं,भारत का राष्ट्र गान जन गण मन और बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान आमार सोनार बांग्ला गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं।वे वैश्विक समानता और एकांतिकता के पक्षधर थे। ब्रह्मसमाजी होने के बावजूद उनका दर्शन एक अकेले व्यक्ति को समर्पित रहा।चाहे उनकी ज़्यादातर रचनाएँ बांग्ला में लिखी हुई हों।वह एक ऐसे लोक कवि थे जिनका केन्द्रीय तत्त्व अंतिम आदमी की भावनाओं का परिष्कार करना था।